मंगलवार, अगस्त 27, 2013

आना श्याम...



टूट गये हैं दिलों के बंधन,
उदास है हर घर आंगन,
जन्म हुआ था प्रेम का जिससे,
वो बंसी तुम  पुनः बजाओ...

अस्त हो गया धर्म का सूरज,
धुमिल हो गयी दिशा पूरव,
पथ भ्रष्ट हैं आज सभी,
गीता का अर्थ समझाओ...

नहीं भाता भीड़ बाजार,
जहां भी जाओ है अंधकार,
मन उदास है कहां जाएं,
श्याम अब आकर रास रचाओ... 
वचन तुम्हे निभाना होगा,
सुदर्शन पुनः उठाना होगा,
अस्तित्व धर्म का बचाना होगा,
आना  श्याम जल्दि आओ...

गुरुवार, अगस्त 22, 2013

अमर कहानी...



देश के वीर शहिदों को,
 हम हिंदूस्तानी भूल गये,
खून से लिखी आजादी की,
अमर कहानी भूल गये...
कितने हुए कुर्वान,
न सोचा,  न गिनती की,
भोगते हुए अब आजादी,
हम काला पानी भूल गये...

उन माओं का कभी सोचा है,
पुत्र जिनके शहीद हुए,
भगद सुखदेव से   नौजवानों की,
 अनुमोल जवानी भूल गये...

जाते जाते कहा था हमसे,
झुकने  न देना मस्तक मां का,
खुशहाली लाना भारत में,
पर हम वो वाणी भूल गये...
हैं  राजा जैसे,  हैं  प्रजा भी वैसी,
चुनाव तो  हैं  वोट बाज़ार,
बहाया था जो शहीदों ने खून,
उसे समझ के पानी भूल गये...


रविवार, अगस्त 11, 2013

सुभाष चंद्र महान को,...



हर आते जाते मुसाफिर से पूछ रही है भारत मां,
मां का प्राणों से प्यारा, पुत्र आखिर गया कहां,
कोई कहता जीवित है, शायद शहीद हो गये
इस असीम संसार में, नेता जी कहीं खो गये।
न यान मिला न शव मिला, न मानती सत्य अनुमान को,
 खोज  रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,

बहुत स्नेह था तुम्हे मां से, क्यों मां को छोड़ चले गये हो,
मां को जिंदगी भर की, असहनीय पीड़ा दे गये हो,
समय बहुत बीत गया है, पुष्प उमीद के बिछाते हुए,
कंठ मां का सूख गया है, पुत्र को बुलाते हुए।
अंग्रेज न जाने कहां ले गये, नेता जी के यान को,
खोज  रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,

नेता जी के प्राक्रम ने, फिरंगियों को हिला दिया,
आखिर गोरों ने डरकर, भारत को स्वतंत्र किया,
नेता जी के परियासों से, जंग तो हम जीत गये,
नेता जी वापिस न आये, कयी वर्ष अब बीत गये।
छोड़ दो हे युग पुरुष, उस अज्ञात स्थान को,
खोज  रही है भारत मां, सुभाषचंद्र महान को,


गुरुवार, अगस्त 08, 2013

अब अपने गांव में...



 मेरा गांव ऐसा था,
बिलकुल स्वर्ग जैसा था,
लेकिन  सब कुछ बदल गया है,
अब अपनेगांव में...

दादा दादी नहीं रहे,
पुराने वृक्ष ढै गये,
केवल उनकी यादें हैं,
अब अपनेगांव में...

न रस्म रिवाज न  मर्यादाएं,
तोड़दी  सब परंप्राएं,
दीपक नहीं,  जलाते हैं  लड़ियां,
अब अपनेगांव में...

सड़कें तो पक्की बन गयी,
गलियां भी साफ हो गयी,
फिर भी कोई नहीं जाता,
अब अपनेगांव में...

लंबी कहानियां, सुहानी राते,
वृक्ष के नीचे न होती बाते,
न मेलों की धूम न झूलों की मस्ती,
अब अपनेगांव में...

न लगते थे घर में ताले,
बेझिझक आते थे आने वाले,
पुलिस चौकी की  आवश्यक्ता है,
अब अपनेगांव में...

दिखता था केवल भ्रात्रिभाव,
फूलों सा था सब का स्वभाव,
अजनवी से   लगते हैं सभी,
अब अपनेगांव में...

बीस  सदस्यों का होता था परिवार,
अब परिवार में है सदस्या चार,
फिर भी लड़ाई झगड़ें हैं,
अब अपनेगांव में...